ग़ज़ल
Feb 17, 2018, 16:45 IST
वजह क्या है जो नाराज़ आप हो गए ,
वो अल्फ़ाज़ -ए – मुहब्बत कहाँ खो गए।
कभी करते थे हर बात पे मशविरा ,
अब तो सूरत से भी बेखबर हो गए।
किस बात की सजा दे रहे हो मुझको ,
जो अब दुआ – सलाम को तरस गए।
न तड़पा इस कदर दिल को दानिस्ता ,
तेरी याद मे हम खुद से बेगाने हो गए।
क्यूँ तड़पा रहे हो मुझे चाहत मे अपनी ,
तेरी चाह मे हम क्या से क्या हो गए।
है इल्तज़ा चाहो मुझे या न चाहो तुम ,
पर तेरी चाहत मे निराश हम हो गए
विनोद निराश
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