ग़ज़ल

 

ग़ज़ल

वजह क्या है जो नाराज़ आप हो गए ,

वो अल्फ़ाज़ -ए – मुहब्बत कहाँ खो गए।

कभी करते थे हर बात पे मशविरा ,

अब तो सूरत से भी बेखबर हो गए।

किस बात की सजा दे रहे हो मुझको ,

जो अब दुआ – सलाम को तरस गए।

न तड़पा इस कदर दिल को दानिस्ता ,

तेरी याद मे हम खुद से बेगाने हो गए।

क्यूँ तड़पा रहे हो मुझे  चाहत मे अपनी ,

तेरी चाह मे हम क्या से क्या हो गए।

है इल्तज़ा चाहो मुझे या न चाहो तुम ,

पर तेरी चाहत मे निराश हम हो गए

विनोद निराश

ऐ – ११४  नेहरू कॉलोनी देहरादून

फोन नंबर – ०९७१९२८२९८९

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