भरम धरम करम”=डा.अंजु लता सिंह  

 

भरम धरम करम”=डा.अंजु लता सिंह  

 दादू के बार-बार मना करने के बावजूद उनके प्रोस्टेट कैंसर का इलाज कराने के लिये पिताजी इस बार उन्हें गांव से शहर ले आए थे. अस्पताल में बड़ा आपरेशन करवाने के बावजूद भी उनकी हालत दिनों-दिन गंभीर होती चली जा रही थी, लेकिन दादू के चेहरे पर हर समय वही गंभीरता और मीठी सी मुस्कान झलकती रहती. मैं भी समय निकालकर अपने आदर्श और प्रिय दादू की सेवा करता और उनकी कही प्रभावी बातें और कथा किस्से यदा-कदा सुन सुनकर लाभान्वित भी होता. -बेटा! परोपकार सबसे बड़ा धरम है.वहम और भरम इसे चौपट कर देते हैं. इन्हें जीवन में कभी तवज्जो नहीं देनी चाहिये . –अपने अपने अनुभव हैं ..एक बर तो भरम के फेरे में में दो दो जान बचा गई थीं बेट्टा. — चल मैं बता दूं पहले अपना किस्सा. –तमने तो आज तक बस भैम ई हैगा उस बात का जी..अरै दु:ख सुख तो सबनै ही झेलने पड़ै हैं…हो जाओगे ठीक.. –तेरे करम अच्छे होंगे अंगूरी! मुझे तो राजा दशरथ जैसा शाप ही दिया था उस बेचारी खरगोशनी ने. —पूरी बात बताइये ना पिताजी! मेरी मम्मी भी वहीं स्टूल सरकाकर बैठते हुए दादू से बोलीं . — नील गायों के आतंक से फसल बचाने के लिये एक बार मैं खेत की रखवाली करने गया तो देखा अचानक ही खेत में जानवरों के दौड़ने भागने की आवाजें सुनाई दीं. अजीब सी सरसराहट सुनकर मैं गुस्से में आ गया और खेत में उसी दिशा की ओर निशाना लगाकर तेजी से जो मैंने दरांती उछालकर फेंकी बस वहीं हो गया मुझसे भ्रम से अधर्म का पाप. गर्भवती खरगोशनी और उसकी अजन्मी संतान दोनों निर्दोषों की निर्मम हत्या हो गई .बिल्कुल दशरथ के तीर की तरह शिकार, जो जाकर श्रवण कुमार को लगा था. मैं ये बीमारी का कष्ट भोग रहा हूं राजा पुत्र-शोक में तड़पे. — हर चमकती चीज सोना नहीं होती,चमकते रेत को देखकर जल के भरम में हिरन प्यासा ही रह जाता है. बिल्ली अपनी सूरत दर्पण में देखे और खुद को शेरनी समझकर भ्रम की शिकार हो जाए तो क्या ये ठीक है? –नहीं तो. फिर अपवाद तो होते ही हैं ना दादू! आपको तो अनजाने में संदेह हुआ. जान-बूझकर जो गलत कदम उठाते हैं वही पछताएं तो ठीक है..गीता का कर्म और फल का उदाहरण याद रखिये बस.. मैं दादू और दादी की बातें बड़े गौर से सुनते हुए बोला . –दादी की सुनोगे तो हैरान ही रह जाओगे.. –हां बच्चू! ठीक कैरे हैं तेरे दादू.एक बार के हुआ..बतारी हूं..सुनो ध्यान से सब..जाड़े की रात में खेतन के धोरे झोंपड़ी में सोना पड़ गया मैंने. सारी रात बढिया नींद आई..तेरे दादा नई रजाई भरवाके लाए थे उसी दिन अर रात भर मैं खुस होकै सोई के कितनी नरम, गुदगुदी अर गरमरजाई लाए हैं ये. –सबेरे देर हो गई उठन मैं तो तेरे दादू नेई आके जगाया. इनोने जो तह बनान खातिर रजाई जोर से झटकी तो दो गज लंबा नाग फुफकारता हुआ लहराके जू भागा मेरी मैया बस जी भोत कांपा मेरा..बची गई बस.. जिसने मैं मुलायम रजाई समझी वो गिजबिजा जहरीला सांप सारी रात मेरे पांयां तले सोता रा..बताओ..हुआ ना वरदान वू बी बच गिया अर मैं भी..भरम में धरम काइ काम हो गिया. — आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे पिताजी… पापा जी दादू को आश्वस्त कर रहे थे. #,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डा.अंजु लता सिंह

Chat conversation end

Share this story