प्रकृति के दो अनमोल विरासतों फूल और नदी के मिलाप से हो रहा संकट=‎Roopal Upadhyay‎

 

प्रकृति के दो अनमोल विरासतों फूल और नदी के मिलाप से हो रहा संकट=‎Roopal Upadhyay‎

 

भारत की समस्त नदियों को कैसे बचाया जाए , कोमल मासूम फूलों से हो रही गंदगी से ,,= भारत देश में तीज त्यौहार दिनों और वारो से भी ज्यादा है । घर में चाहे कोई त्यौहार हो या नित्य घर में होने वाली आम पूजा, सुगंधित प्यारे फूलों के बिना सब कुछ अधूरा सा लगता है । दिवाली होली पर मुख्य द्वार पर लगाई जाने वाली सुंदर बंदरवार हो या होली पर टेसू के फूल बिन फूल सब सुना ।

भारत देश में अमूमन 36 हजार करोड़ देवी देवता है । तो आप समझ सकते हैं, उतने ही मंदिर ,और फिर इंसान ने अपनी सुविधा अनुसार हर गली मोहल्ले में मंदिर निर्माण किया । इंसान भगवान को ही अपने पास ले कर आ गया ।

एक बार सोच कर देखो ? क्या आप भगवान का श्रृंगार बिना फूलों के सोच भी सकते हो ? अमूमन हर रोज हजारों क्विंटल फूल चढ़ाए जाते हैं, मंदिरों में । जिसकी जितनी श्रद्धा और सामर्थ्य वो उतने फूल और उतनी माला अर्पण करता है । हमारे यहां ! प्रतिमाओं का पूजन पुष्प हारो से करना श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है , और इसमें कुछ बुरा भी नहीं है , हमारी मान्यता ही ऐसी हैं ।

पर क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इन फूलों का बाद में क्या होता है ?= या तो वे सड़क पर यूं ही फेंक दिए जाते हैं या फिर किसी सरोवर में नदी में बहा दिए जाते हैं । इसका नतीजा मंदिर परिसरों में गंदगी तथा नदी के किनारों पर फिसलन । नदी ,सरोवर के किनारे पर चिकट और मच्छर मक्खी की पैदावार में बढ़ोतरी, बेइंतेहा गंदगी और बदबू से समस्त जल स्रोतों में काफी हद तक प्रदूषण भर जाता है ।

फूलों से हो रहे दुरुपयोग को उपयोग में कैसे बदला जाए ? इसका उपाय क्या हो ?
पर्यावरणविद के सामने यह एक गंभीर समस्या की तरह उभर कर आने वाला प्रश्न था । और इस समस्या का समाधान ढूंढना अपने आप में एक गंभीर विषय था । तो अब क्या और कैसे किया जाए ?

हमारी मान्यता ही ऐसी है कि हार, फूल , बेलपत्र के बिना हम कोई पूजा अभिषेक की कल्पना भी नहीं कर सकते । तो इसके लिए लोगों को मना करना या इस मान्यता का रद्द होना दोनों ही नामुमकिन है । इसका एक सुखद परिणाम निकाला फूलों से बनाए खाद ।

मध्य प्रदेश, के “इंदौर “शहर को स्वच्छ भारत में सबसे साफ सुथरा क्षेत्र साबित किया । इंदौर नगर निगम के आयुक्त “मनीष सिंह” बधाई के पात्र हैं । उन्होंने एक जागरूक नागरिक का कर्तव्य निभाते हुए शहर के सबसे बड़े खजराना गणेश मंदिर ,प्रशासन ने एक कंपनी को ठेका देकर फूलों से ऑर्गेनिक खाद बनाने की शुरुआत की ।

मंदिर प्रशासन के सामने 30 से 50 क्विंटल फूलों का समाधान निकालना था । मंदिर के सभी कार्यकर्ता और अधिकारी ने फिर एक समिति का गठन किया और एक खाद प्लांट का काम का शुभारंभ हुआ । दो साल की कड़ी मेहनत से एक खूबसूरत निदान सामने आया और अब यहां 300 से 500 किलो फूलों से बेहतरीन खाद्य तैयार की जाती है ।

सबसे बढ़िया बात यह है कि इस खाद निर्माण में खर्चा नाम मात्र का है और कमाई ज्यादा क्योंकि , बेसिक रॉ मेटेरियल तो मुफ्त में मिलता है । और ऑर्गेनिक खाद की डिमांड बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है । शहर के लोग घर के लॉन गमले और बगीचों के लिए खरीद रहे हैं । एक सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि शहर का आम नागरिक भी छोटे बड़े मंदिर से फूल पत्तो को इस अभियान में दे कर सहयोग कर रहा हैं ।

सबसे ज्यादा शादी ,दुकान इनॉग्रेशन ,मकान मुहूर्त ,पूजा में फूल लाए जाते हैं । अब समारोह में इस्तेमाल किए गए फूलों को खाद निर्माण में काम लिया जा रहा है । नवरात्रि, शादी गणेश महोत्सव में तो फूलों की खपत 200 क्विंटल तक पहुंच जाती है ।

भारत में कौन-कौन से मंदिर फूलों से खाद बनाने में प्रयासरत हैं= पहला उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर , वहां पर चढ़ाई गई समस्त माला ,फूल , बेल पत्र ,को खाद निर्माण में काम लिया जा रहा है ।

दूसरा देवास स्थित चामुंडा मंदिर, टेकरी के मंदिरों में हर दिन निकलने वाले फूलों से खाद बनाई जाती है ।यहां एक गड्ढा बनाकर उसमें फूल डाल दिए जाते हैं और उसमें बहुत से केंचुओ को छोड़ा जाता है । केंचुओ की मदद से बहुत रिफाइंड और बारीक खाद तैयार हो जाती है । जैविक खाद उत्पादन के लिए 25000 तक की लागत की मशीन लगाई जाती है जिसमें फूलों की कंपोस्ट खाद बनती है । इस खाद की डिमांड दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।

केंचुए के पेट में अमीनो एसिड होता है जो खाद बनाने में  सहायक होता है । केंचुए को खेत की भूमि उर्वरक करते हैं क्योंकि केंचुओं में एक विशेषता होती है कि जिस रास्ते से जाते हैं वहां से निकलते नहीं है यानी हर बार जाने का और आने का एक नया रास्ता । इसी से खेतों में नालिकाओं का संचार होता है और इससे वायु संचार भी होती है और पानी भी अच्छा उतरता है जमीन के नीचे । केंचुए किसान का काम कर उन्हें कृषि में सहयोग करते हैं इसीलिए इन्हे किसान का मित्र भी कहा जाता है ।

खाद निर्माण का यह कार्य अत्यंत सराहनीय है । मध्य प्रदेश के इस प्रयास का अगर संपूर्ण देश अनुसरण करने लग जाए तो नदी सरोवर बांध कुए दूषित होने से बच जाएं और सभी जल स्रोत खुली हवा में सांस ले पाए जल निकास के लिए बनी नालियां जाम नहीं हो सकेंगी। नदी का पानी स्वस्छ रहेगा , गदला नहीं होगा , भारत की समस्त नदियों को हमें आज स्वच्छ और बैक्टीरिया रहित करने का प्रयास करना अत्यंत आवश्यक हो चुका है ।                           ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,रूपल उपाध्याय

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