नदी -==श्रीमती वर्षा ठाकुर
नदी जब जन्म लेती है ,
पतली धार बनकर ,
निर्मल नीर (पानी) बहाती है।
ज्यों ज्यों यौवन की ओर ,
कदम बढ़ाती है,
खूब शोर मचाती ,
इठलाती -बलखाती,
तोड़ फोड़ करती जाती है।
सबको आँख दिखाती,
पर्वत को भी बिजराती है ।
रास्ते में जो भी आता,
उसका मटिया मेट कर देती ,
साथ ही उसे अपना हथियार बना लेती ।
अडिग कठोर चटटानो को ,
तोड़ तोड़ कर ,
सुन्दर गहरी घाटी ,
झरने और प्रपात बनाती है ।
जैसे जैसे यौवन ढलता (प्रौढा अवस्था )
शांत होते चली जाती है ।
कठोर मार्ग को छोड़कर ,
कोमल राह अपनाती ।
अपने साथ बहाकर ,जकड़कर ,
लाए हुए अवसादों (जलोढ़क) को ,
आज़ादी देते जाती है ।
आज़ाद होकर भी
अवसाद रिश्ते खूब निभाते है ।
आपस में मिल मिल कर ,
सुन्दर उपजाऊ मैदान ,
द्वीप, झील और तटबंध बनाते है।
अंत काल जब आता, क्षीणकाय हो जाती,
तब नदी खूब विशाल हृदय वाली हो जाती ।
अपने पराये का भेद भुलाकर ,
सबको खूब गले लगाती।
सबको संग लेकर
महासागर में मिल जाती ।
खुद मोक्ष पाती,
संग सबको मोक्ष दिलाती है ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,श्रीमती वर्षा ठाकुर प्राचार्य,
शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय जुनवानी ,भिलाई।