उड़ान = =संध्या बक्शी

 

उड़ान = =संध्या बक्शी

 

आज नवीन अनुपम भोर हुई
स्वर्णिम उजास चहुँ ओर हुई
विधि ने सुनेहरी कलम चलाई 
मेरे सुप्त स्वप्न को मिली रिहाई

उम्र बीती अब तक ,बन्धन में
जीवन गुज़ारा, अश्रु क्रन्दन में
अब ज्यों पिंजरे का खुला द्वार
मिला मुझको अप्रतिम उपहार

हर क्षेत्र है अब मेरी प्रयोगशाला
नवीनीकरण का अंदाज़ निराला
उत्साहीनता का उदभेदन होगा
स्फूर्ति का अब सम्प्रेषण होगा

सरहाना मिले , हो ऐसा प्रयास
उत्साहवर्धन की है मन में आस
स्वतंत्रता ने लौटाया स्वाभिमान
अब मेरा आकाश है मेरी उड़ान

प्रस्तुत कर ,अब ऐसा उदहारण
नहीं मैं ,सोन चिरइया साधारण
नाप लूँगी ,ये ऊंचाइयां नभ की
सस्नेह लूँगी ,बधाइयाँ सब की

,,,,,,,,,,,,,,संध्या बक्शी ,जयपुर

Share this story