कृषक ****== पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

 

कृषक ****== पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

सूखे से संतप्त कृषक हैं, पड़ी बेड़ियां पावों में।
अति वृष्टि से बाढ़ का खतरा, रुदन पड़ा है गावों में।।

माह आषाढ़ यूँ ही बीता, इन्द्र देव तब रूठे थे।
सरकारी वादों का क्या है, वादे सारे झूठे थे।।
क्रोधाग्नि में अंशुमाली के, फसल झुलस गयी गाँवों में।
सूखे से संतप्त कृषक हैं, पड़ी बेड़ियाँ पावों में।।

बैल खेत खलिहानों में ही, वक्त अभी तक बीत गया।
गाय भैंस की सेवा करते, जीवन सारा रीत गया।।
छुधा पिपासा से व्याकुल पाषाण हृदय है गाँवों में।
सूखे से संतप्त कृषक हैं, पड़ी बेड़ियाँ पावो में।।

करे परिश्रम वह खेतों मे, फसल सभी उपजाता है।
श्रम के बदले फल मीठा वह,उचित मूल्य कब पाता है।।
खा जाते फल उसका दल्ले, पड़े सयाने गाँवो में।
सूखे से संतप्त कृषक हैं, पड़ी बेड़ियाँ पावो में।।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

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