एक सुखद संस्मरण ==Reetu Gulat
उस दिन जन्माष्टमी थी।हर साल की तरह हम बच्चे मंदिर जाने के लिये उतावले थे।पापा टूर पर थे।
मां प्रसव वेदना से पीडित थी ,पर हम बच्चे क्या जाने। भादो की अष्टमी थी, थोडी रिमझिम की फुहारे
बरस रही थी। जैसे ही पापा घर लौटे हम बच्चे पापा को मंदिर ले जाने की जिद करने लगे।
पापा ने समझाया…..बच्चो तुम्हारी मां की तबियत ठीक नही।आज मंदिर नही जा पायेगे। उदास होकर हम सब बच्चो ने पडोस के बच्चो संग मिलकर खुद सी पास के बडे से चबूतरे पर राधा कृष्ण की झांकी सजा ली। मेरी एक मित थी गुडिय़ा जो सावली थी उसे कृष्ण बनाया गया और मै खूबसूरत थी तो मुझे राधा बनाया गया। रात के बारह बजे तक हम झाकी मे सजे खडे रहे। बहुत नीदं आ रही थी पर चुपचाप खडे़ रहना मजबूरी थी। आस पडोस के लोग हमे माथा टेकते , पैसे चढाते व पहचान कर हंसते, हम शरमाकर मुंह नीचा कर लेते।
खैर प्रशाद बंटने के बाद हम सब घर लौट आये। आते ही हमारे पापा ने हमे स्पजी सफेद रसगुल्ले खिलाये बताया तुम्हारा भाई हुआ है, इस तरह जन्माष्टमी के दिन हमे भाई मिला। वो एक यादगार छोड़ गया एक सुखद संस्मरण के रुप मे। उसका नाम भी हमने कृष्ण ही रखा।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ऋतु