भगवती सिंह सात बार विधायक रहे, पर अपना घर है ना गाड़ी

 

भगवती सिंह सात बार विधायक रहे, पर अपना घर है ना गाड़ी

uttar pradesh / उन्नाव में जन्में भगवती गांव में 5वीं तक की शिक्षा लेने के बाद कानपुर शहर में अपने पिता के पास आकर रहने लगे। यहीं से उनके चुनावी दांस्ता की प्रारम्भ हुई और सात बार विधायक बने। जानकारी हो कि भगवती को पाँच लड़के और एक लड़की है, जिसमे एक बेटे की मौत हो चुकी है। बड़े बेटे रघुवीर सिंह सेवा निर्वित्त अध्यापक, दूसरे नंबर के बेटे दिनेश सिंह रिटायर्ड एयर फोर्स, नरेश सिंह रिटायर्ड प्राइवेट , रमेश सिंह रिटायर्ड टेलीफोन विभाग में है। बेटी की शादी हो चुकी है। शहर के धनकुट्टी इलाके में विधायक भगवती सिंह वर्तमान समय में एक किराए के मकान में अपना अंतिम समय व्यतीत कर रहे हैं। उनके साथ एक भतीजा और तीसरे नंबर का बेटा नरेश सिंह अपने परिवार के साथ रहते हैं।भगवती सिंह ने बताया कि उन्नाव से कानपुर आने के बाद कॉलेज लाइफ में कई क्रांतिकारियों से संपर्क हो गया। उन्हें देखकर लोगों की सेवा करने की भावना जागी। उन दिनों कांग्रेस पार्टी का बोलबाला था। पार्टी का क्रेज देख कांग्रेस में शामिल हो गया। 11 साल की उम्र में कानपुर के कपड़ा बाजार में मौजूद एक दुकान में काम करने लगा। कपड़ा बाज़ार में काम करने वाले कर्मचारियों का एक संगठन बनाया। फिर उनकी छुट्टी और काम करने के समय के लिए लड़ा और उसमें कामयाब भी रहा। भगवती कहते हैं, साल 1952 के विधानसभा चुनाव में पीएसपी पार्टी ने कानपुर के जनरलगंज सीट से टिकट दिया। पार्टी को लीड कर रहे जय प्रकाश नारायण ने खुद दिल्ली बुलाकर टिकट दिया था। लेकिन मैं हार गया। इसके बाद 1957 के विस चुनाव में पीएसपी पार्टी ने दोबारा से उन्नाव के बारासगवर सीट से चुनाव लड़ा और जीत गया। 1962 के चुनाव में बारासगवर सीट से कांग्रेस कैंडिडेट देवदत्त ने मुझे हरा दिया। 1967 के चुनाव में मैंने जीत दर्ज की। इसके बाद 1969 के विस चुनाव में मैं कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीत गया। यहीं से कांग्रेस के साथ मेरा सफर शुरू हो गया। ये जीत का सिलसिला 1974 में भी जारी रहा।भगवती सिंह बातचीत में बताया कि मेरे पास अपना कोई मकान नहीं है और एमएलए रहने के दौरान कभी इस बारे में सोचा नहीं। मेरा मानना है कि जो नेता अपने घर के बारे में सोचता है, वो दूसरों का कभी भी भला नहीं कर सकता। मैं अगर अपने घर के बारे में सोचता, तो सात बार विधायक नहीं बनता। लोग मुझे चुनाव लड़ाने के लिए मेरे दरवाजे पर हफ्तों नहीं बैठते। हालांकि, मेरे बेटे भी मेरी इस सोच को नहीं मानते, इसलिए वो आज अलग अपनी दुनिया बसाकर रह रहे हैं। एक बेटा गुजरात, दूसरा यूपी में कहीं और तीसरा बैंग्लोर में अपने परिवार के साथ रहता है। बस एक मेरे साथ है। साल 1977 में बीजेएस के देवकी नन्दन से हार गया, लेकिन 1980 और 1985 के चुनाव में जीत हासिल कर ली। साल 1989 में देवकी नंदन ने फिर से हरा दिया। 1991 में अपने आखरी चुनाव में चौधरी देवकी नंदन को हराकर मैं 7वीं बार एमएलए बना।

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