#पीर_क्यों_होती_हृदय_में_?= Anuradha Amarnath Pandey

 

#पीर_क्यों_होती_हृदय_में_?= Anuradha Amarnath Pandey

 

प्रेम के अवदान में तो,
हर्ष होना चाहिए था ।
पीर क्यों होती हृदय में??

प्यार जग में हो गया तो,
भूल क्या इतनी बड़ी है ।
पीर उर के द्वार पर क्यों
अनवरत आकर खड़ी है ।
क्यों कहो इतनी बड़ी फिर
वंचना होती प्रणय में।

पीर क्यों होती हृदय में??

दंश क्यों मिलता यहाँ है ,
प्रीत के अम्लान पथ में।
स्वार्थ हो तो अर्थ भी है ,
वक्र होता चक्र रथ में।
पंथ इसमे क्यों जटिल पर –
रुद्ध स्यंदन क्यों विजय में।

पीर क्यों होती हृदय में??

प्रेम की अवमानना में ,
कौन सा है भाव संचित ?
क्यों जगत यह ढो रहा है ,
युग-युगों से रीत गर्हित ?
ईश का जब वास होता ,
प्रेम रत उर के विलय में ।

पीर क्यों होती हृदय में??

क्यों जगत यह रोक देता ।
व्यर्थ कह ! पावन मिलन को ?
मार कर क्या प्राप्त होता ,
वंद्य द्वय उर के लगन को ?
कौन सा कह !सुख छुपा है ,
जागतिक गुरु इस अनय में।

पीर क्यों होती हृदय में??

,,,,,,,,,,,,,,,,,,अनुराधा पाण्डेय

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