किस विध दर्शन पाऊँ मैं == डा० भारती वर्मा बौड़ाई
तन वेदना से भरा हुआ मन में भी पीड़ा भरपूर,
माँ तेरा दरबार सजा है मुझको लगता बहुत दूर,
कैसे आऊँ पास तुम्हारे किस विध दर्शन पाऊँ मैं!
सजधज कर तेरे दर आते व्रत कर दर्शन करके जाते मैं,
तन की पीड़ा में उलझी मनोभाव भी उलझे जाते,
एकाकी मन, बिना सहारे बता कैसे तुझ तक आऊँ मैं!
शब्दों की गूँथी है माला आँचल में कुछ भाव पुष्प.
अपने मन को मंदिर करके उसमें तुम्हें किया स्थापित,
जो भी जैसा ला पाई सब लेकर,अर्पित तुझे रिझाऊँ माँ!
हे शूलधारिणी! हे चित्तरुपा! हे पिनाकधारिणी! हे तपस्विनी!
हे शाम्भवी! हे सत्यानंदस्वरुपिणी! हे रत्नप्रिया! हे उत्कर्षिणी!
अनंता! हे अग्निज्वाला! हे कात्यायनी! तेरे गीत, भजन, आरती गाऊँ मै!
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आ गई नवरात्रि! ———————-
आ गई नवरात्रि चलो सब सखियों सजो री!
लाल लाल चुनरी लाल घाघरा पहन चलो री!
माँग में टीका सजे गले मोतियन माल पहनो री!
आज मोहिनी रात चलो अब मिल गरबा करें री!
ढोलिया से कह दो ढोल बजता रहे ढम ढमाढम ,
सुर ताल पर आज अपनी पायल बजे छम छमाछम ,
कितने दिनों बाद ये मनभावनी नवरात्रि उपहार लायी,
माँ भवानी को रिझाने आज गरबा करने की रात आयी ,
थकना नहीं आज हमें गरबा करेंगे सब झूम झूम कर गरबा होगा,
रास रचेगा होगा डांडिया जैसा पहले न हुआ चलो चलो सखियों!
सज गये गरबा करें डोल जाये धरा देखने वाले भी,
आज झूमने लगेंगे भक्तिमय हो ताल पर।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डा० भारती वर्मा बौड़ाई