जीवन खिले == अनिरुद्ध

 

जीवन खिले == अनिरुद्ध

 (1)
जागे रहो आगे रहो,
जीवन यही, रागे रहो।
होगी सुबह, संज्ञान लो,
आगे बढ़ो, हरि नाम लो।।
(2)
जागो मनुज, शिव ध्यान धर,
नित काम कर, उत्थान कर।
देखो सुबह, कुछ कह रहा,
पाया वही,जो जग रहा।।
(3)
जाना कहाँ, रहना यहीं,
दुख दर्द भी, सहना यहीं।
हुंकार भर, चल प्यार कर,
बैठो नहीं, तुम हार कर।।
(4)
खुदसे नहीं, तकरार कर,
रहना नहीं, दिल जार कर।
हर पग चलो, सम्हार कर।
ये जिंदगी, गुलजार कर।।
(5)
क्या चाहते, दिल खोल कह,
मायूस क्यों, बिन तोल कह।
बातें सभी, रस घोल कह,
डरना नहीं, अनमोल कह।।
(6)
दीपक जला, चमकार हो,
चारो तरफ, रसधार हो।
जीना यही, लगजा गले,
खुशियाँ मिले, जीवन खिले।।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अनिरुद्ध

Chat conversation end

Share this story