अन्ततः माँ मान गई ( लघुकथा) ==डा० भारती वर्मा बौड़ाई

 

अन्ततः माँ मान गई ( लघुकथा) ==डा० भारती वर्मा बौड़ाई

विधि दो साल की हो गई थी तो कृषि और सुगम ने अपने परिवार को पूर्ण करने का निर्णय लिया ताकि विधि को भाई या बहन का साथ मिले। अंततः वो दिन भी आया जब कृषि ने सुगम को बताया कि वो फिर से माँ बनने वाली है। दोनों की प्रसन्नता का कोई ओर-छोर न था। विधि को साथ मिलेगा, तब वो ऐसा करेगी, वैसा करेगी , यह कहेगी , वह कहेगी इसी कल्पना में मगन रहते। कृषि और सुगम ने जब माँ को बताया तो वह प्रसन्न तो हुई पर थोड़ी अनमनी सी लगी। दोनों ने सोचा शायद माँ की तबियत थोड़ी ठीक नहीं है इसलिए ऐसा लगा उन्हें , पर बात वो नहीं थी। घुमा-फिरा कर माँ ने हर समय एक ही बात की रट लगा दी कि वह जाँच करवाने के लिए उसे अपनी परिचित डॉक्टर के पास लेकर जायेंगी। कृषि ने सुगम को बताया तो उसने कहा चिंता की कोई बात नहीं। ऐसा कुछ नहीं होने वाला। पर माँ ने तो आज उसे लेकर जाने की ठान ही ली थी। अब कृषि ने सोच लिया था कि चुप रहने से काम चलने वाला नहीं। माँ की नवरात्रों के प्रति, कन्या जिमाई के प्रति आस्था से वह बखूबी परिचित थी। उसने सोच लिया था आज इस बात को खत्म करके रहेगी माँ जैसे ही तैयार होकर आई और चलने के लिए कहा तो कृषि ने तुरंत कहा…” माँ यदि आप सदा के लिए नवरात्रि के व्रत और कन्या जिमाना छोड़ देने का वादा मुझसे करें तो मैं आपके साथ चलूँगी” “ ऐसे कैसे मैं तुमसे वादा कर लूँ?” यदि बेटी होगी तो उसकी भ्रूण हत्या करके मैं कन्या तो कभी आपको जिमाने नहीं दूँगी।” माँ को लगा कि जैसे साक्षात् दुर्गा उनके सामने खड़ी होकर आदेश दे रही है। उन्होंने कृषि के सिर पर हाथ फेरा और उसके लिए दूध लाने रसोई में चली गई।                                                                                        ————————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई

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