जमाने बीत गए और वो नहीं आये ==Saroj Yadav

 

जमाने बीत गए और वो नहीं आये ==Saroj Yadav

धुंधलका शाम का दिखते हैं डूबते साये
जमाने बीत गए और वो नहीं आये
बिछड़ना मिलना भी जैसे कि रस्म होती है,
ये राह जाने कहाँ जाके ख़त्म होती है,
सफर ये कैसा वो वापस यहां नहीं आये
जमाने बीत गये और वो नही आये!
नहीं हैं वो यहाँ तो खुद से ही मिल रहे हैं हम
वफ़ा की राह में तन्हा ही चल रहे हैं हम
सफर में साथ दिखे सिर्फ अपने ही साये.
जमाने बीत गये और वो नही आये
ये हाथ रीत गया है तुम्हारे जाने से
बस एक ख़्वाब ही साथी है एक जमाने से
नहीं है कुछ भी तो अब ख्वाब कैसे बिखरायें
जमाने बीत गये और वो नही आये,

                    ….@सरोज यादव”सरु”

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