डगमगाती कशितयां मझदार मे=‎Reetu Gulati‎

 

डगमगाती कशितयां मझदार मे=‎Reetu Gulati‎

(1)
रास्ता अब क़ठिन है तुम फिसले
डगमगाती कशितयां मझदार मे।।
(2)
डग़मग़ाती है जिन्दग़ी संसार मे।
डग़मग़ाती है कशितयां मझदार मे।।
(3)
तड़फ़ता रहा रात दिन प्यार मे।
डग़मग़ाती है क़शितयां मझदार मे।।
(4)
ख़ो ना जाना तुम उज़ड़े रेग़िस्तान मे
डग़मग़ाती है कशितयां मझदार मे।।
(5)
हक तेरा भी निकलता है ‘ऋतु’ क्यो
डग़मग़ाती है कशितयां मझदार मे।।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ऋतु

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