भाग्य रेखा (लघुकथा) ==‎Reetu Gulati‎ 

 

भाग्य रेखा (लघुकथा) ==‎Reetu Gulati‎ 

बेटा………माँ, माँ अपनी दुकान के साथ वाला
पडोसी है ना,!!!!!
माँ,….हां फिर,आगे बता,क्या हुआ??
बेटा,……वो, अपनी बेटी रमा की शादी हेतु अपना घर बेचना चाहता है!कहता है एक बार आकर जरूर देख लो,चूकि मेरा तो धन्धा ही मकान खरीदने व बेचने का है,मुझे तो कमीशन मिलनी है,……,इसीलिये मुझे तो जाना पडेगा,तू कहे तो मैं अभी चला जांऊ? शाम लाल ने अपनी बूढी मां से सहमति लेनी चाही। मां ने भी अपनी सहमति देते हुऐ कहा”””””बेटा देख ले!अगर घर अच्छा है तुझे पसन्द आये तो…..मगर उनके रहने का आसरा…….बोलते बोलते वह चुप हो गयी।
उधर शाम लाल ने उनका घर देखा काफी अच्छा बना हुआ था।बातो ही बातो मे उसने उनसे पूछ ही लिया…..अरे भाई ,घर तो तुम्हारा बहुत अच्छा है पर तुम इसे बेच दोगे तो फिर रहोगे कहां?शामलाल जी,”घर तो हम किराये का भी ले लेगे मगर बेटी की शादी करनी ज्यादा जरूरी है”।सकुचाते हुए फिर बोला….विना दहेज के अच्छे रिशते मिलते कहां है…..घर तो हम फिर छोटा मोटा ले लेगे।एक बार शादी बढिया कर दे बेटी की,कह कर चुप हो गया।
अभी घर को बेचने की सौदेबाजी हो रही थी,इतने मे उनकी बेटी रमा चाय लेकर आ पहुंची।शामलाल ने लडकी को उपर से नीचे तक निहारा !तभी उसने भीतर ही भीतर कुछ फैसला कर लिया ;मुस्कुराते हुऐबोला-अरे इस सोदैबाजी को छोडो,..ऐसा है तुम्हारी बेटी का हाथ मुझे अपने बेटे के लिये चाहिये वो भी सिफ दो कपडो मे। हम चुन्नी चढा कर ले जायेगे अपनी इस लक्ष्मी को,बोलो है मंजूर?बेटी का पिता कभी अपने घर को देख रहा था कभी अपनी बेटी के भाग्य रेखा को…..
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ऋतु गुलाटी।

Share this story