चंद शेअर चंद अशआर ==विनोद निराश

 

चंद शेअर  चंद अशआर ==विनोद निराश

चंद शेअर <> चंद अशआर
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देख के उनको हम , संभालते तो कहाँ तक ,
सामने आये ऐसे , कतराते तो कहाँ तक।
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हम भी तेरी निगाहों में वफादार होते ,
काश तेरी तरहा हम भी अदाकार होते।
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हालात के समंदर में, मैं यूँ समा गया ,
ख्वाहिशों को मेरी, जैसे वक़्त खा गया।

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मेरी इल्तज़ा का उनपे असर नहीं होता ,
जिनके बगैर दिन मेरा बसर नहीं होता।
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हुस्न तेरा मेरे इश्क़ मे शामिल है ,
खुदा जाने तू मुझसे क्यूँ गाफिल है।
फकत एक तेरी कमी है ज़िंदगी मे ,
वरना खुदा की सारी नेमतें हांसिल है।
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तमाम रात आँखों में, उनके ही ख्वाब आते रहे ,
कभी खुद को हम, कभी दिल को समझाते रहे।
सुर्ख लब , ये बिखरी जुल्फें , वो तीरे-नज़र ,
अदा-एं-हुस्न से वो शब् भर यूँ ही लुभाते रहे।

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आजकल पहले सी हंसीं रात नहीं होती ,
एक शहर में रहके भी मुलाकात नहीं होती।
शायद इश्क़ वो भी करते हैं हमसे निराश,
ये बात अलग है कि उनसे बात नहीं होती।
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ना पैगाम भेज सका , ना जुबां साथ दे सकी ,
वो भी अनाड़ी थी , जो नज़र ना पढ़ सकी।
,,,,,,,,,,,,,,विनोद निराश = 09719282989

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