नारी का अस्तित्व मुरझाया इक फूल ==अनामिका पाण्डेय तरणि  

 

नारी का अस्तित्व मुरझाया इक फूल ==अनामिका पाण्डेय तरणि  

आज जाने क्या हुआ है मन बड़ा विचलित सा प्रतीत हो रहा है लोग नवरात्र में नवदिन मां भगवती की पूजा आराधना तो करते हैं पर उन नव दिनों में भी नारी के साथ अत्याचार करना नहीं भूलते,बताने को तो खुद को देवी मां का सबसे बड़ा भक्त बताएंगे, आज नारी का अस्तित्व किताब में पड़े हुए उन सूखे हुए फूलों की तरह है जिसका उपयोग करने के बाद लोग उसे किताबों संजोकर रखने देते हैं कुछ ऐसी ही तो होती उस औरत की जिंदगी जो अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाहन करते हुए अपने सारे स्वप्नो से समझौता कर लेती है पति की डांट सुनना सांस का पैर दबाना,ससुर का ध्यान रखना, बच्चों की देखभाल करना, होमवर्क करवाना और इतनी ज़िम्मेदारियां सर मत्थे लेने के बाद जब कोई उसके जरा से झगड़ने या कोई गलती कर देने पर उसे समझाने के बजाय कुल्टा, कुलक्षनी ,अभागिन जैसे शब्दों से सम्बोधित करता होगा तो क्या गुजरती होगी उस पर ये कोई नहीं सोचता और न ही समझना चाहता है उसकी ज़िम्मेदारियां और जब एक स्त्री ही स्त्री का सम्मान न करें तो औरतें से करता उम्मीद रखे। किसी ने सच ही कहा है- हमें तो अपनों ने लूटा , गैरों में कहां दम था। मेरी कस्ती वहीं डूबी, जहां पानी कम था।। जब एक नारी ही उसके अस्तित्व की दुश्मन बन जाए तो भला कौन बचा सकता है उसका अस्तित्व? जाने क्यूं बार -बार ऐसा लग रहा है कि आज बुराई के प्रतीक रावण का पुतला जल तो रहा है पर सिर्फ पुतला वो बुराई नहीं जिसकी खुशी मना रहे हैं हम, बुराई तो अभी भी पूर्ववत ही विद्यमान है हमारे समाज में; जानते हैं कैसे? मुझे पता है आप जानते किन्तु आप जानकर भी अन्जान है क्योंकि आप उस पर तनिक भी विचार नहीं करते अपितु आप उसी सम्बोधक बन अच्छाई को तमाशा बनते आ हुए देखते रहते हैं । जब कोई हमारी बहन बेटियों को परेशान करता है तो हम उसे जान मार देना चाहते हैं और वहीं जब हम ये गलती करते हैं तो ये भूल जाते हैं कि वो भी किसी बहन बेटी होगी और और जब हमारे सामने किसी को परेशान किया जाता तो भी हम चुपचाप तमाशा देखते है या वहां से कायरों की भांति खिसक लेते हैं ;तो ये हैं हमारे समाज की हकीकत और सब इससे रूबरू हैं पर फिर भी कोई इस गौर नहीं करता। आगे और करता लिखूं ? जब नारी ही खुद नारी के अपमान की भागीदारी हो फिर लोगों की नजरों में व आखिर क्यों न बेचारी हो क्यूं लोगों के अत्याचारों के पास काट वह पायेगी जब निज अन्तर्मन में व्यापित निजता से ही गद्दारी हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,__अनामिका पाण्डेय तरणि

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