“प्राथमिकता”==‎Roopal Upadhyay‎ 

 

“प्राथमिकता”==‎Roopal Upadhyay‎ 

 

रोहन के चेहरे पर, थकान से ज्यादा मानसिक तनाव साफ झलक रहा था । कोर्ट से आकर, सीधे वॉक पर जाने की बजाए आज जूते खोलकर सोफे पर ही धम्म से लेट गया । पत्नी शैफाली को समझते देर न लगी कि आज मामला गंभीर हैं, चाय का प्याला हाथ में थमाते हुए उसने पूछा “क्या हुआ स्वीटहार्ट” !

“शैफाली आज ऐसा महसूस हुआ कि काश मैं एक कुत्ता होता” ।

“रोहन क्या पागलों जैसी बात कर रहे हो ,सीधे सीधे बताओ क्या हुआ “।

“शैफाली, ” मेरे क्लाइंट “रिक्सन” ने अपनी पत्नी “जेनिफर” से तलाक के लिए अर्जी लगायी थी ।दोनों ही आर्थिक रूप से समृद्ध हैं और आपसी सुलह से तलाक चाहते थे” ।
“केस बिल्कुल पेचीदा नहीं था तो तलाक लेने या देने में कोई दिक्कत नहीं थी”। “पर दोनों प्रार्थियों का कहना था की वो अपने प्यारे “रॉबिन” के बिना जीने के बारे में तो सोच भी नहीं सकते थे” ।

“रॉबिन जब तीन महीने का था तब “जेनिफर” ने उसे अपने भाई “पीटर” से अडॉप्ट किया था और पिछले पांच साल से रॉबिन उनके साथ हैं” । दोनो को अलग तो होना था, पर रॉबिन फिर किसके पास रहेगा ये एक पेचीदा सवाल बन गया था। थक हार कर जज साहब ने आदेश दिया, “रॉबिन को बुलाए कोर्ट रूम में” जब दस मिनिट बाद “रॉबिन” डॉग ट्रेनर के साथ, उछलता कूदता कोर्ट रूम में प्रवेश करता है । तो उसको देख कर सारे लोग हंसने लगते है,” “एक कुत्ते की कस्टडी” के लिए इतनी लड़ाई” ! “उनके प्यारे रॉबिन को कोई कुत्ता बोले ये बात जेनिफर और रिक्सन को गवारा नहीं थी “। “दोनों दौड़ कर रॉबिन के गले लग जाते हैं । रॉबिन भी उन दोनों को देख कर खुश होकर अपनी पूंछ हिलाने लगता हैं “।

जेनिफर और रिक्सन के रॉबिन के प्रति स्नेह को देख कर जज ने आदेश दिया कि, “अगर आप दोनों को एक साथ रहने में समस्या हैं तो ऐसे में आप “रॉबिन” को “एनिमल केयर सेंटर” में भर्ती करवा दे, जब कभी आपको उसकी याद आए तो मिलने चले जाया करे” । “ये सुनकर पता नहीं क्या हुआ जेनिफर और रिक्सन ने जज साहब से, दो मिनट का समय मांगा और आपस में बात करके ये तय किया कि क्योंकि रॉबिन को हम दोनों चाहिए और रॉबिन को हम दोनों, तो रॉबिन की खुशी के लिए हम अपनी तलाक की अर्जी वापस लेते हैं” ।

शैफाली! “ऐसे ही एक केस ने सत्रह साल पहले मेरी ज़िन्दगी बदल दी थी”। “मैं तो “राजेश और सविता” की इकलौती संतान था” । जब उन दोनों के आपसी मत भेद बढ़ गए तो उन्होंने भी तलाक के लिए अर्जी लगायी थी” । ” पर दोनो के लिए पैसा कैरियर और समाज में नाम उनके बेटे से कई ज्यादा महत्व रखता था ” ।

“दोनों ने ही जज के आगे अपनी अपनी दलील पेश की थी और अपनी मज़बूरीयों की एक लंबी लिस्ट थमाई थी अपने वकील के द्वारा की वो रोहन के खर्चे तमाम उम्र वहन कर सकते हैं पर परवरिश नहीं कर सकते” । “दोनो एक दूसरे पर रोहन कि जिम्मेदारी थोपना चाहते थे । पर लेना कोई नहीं चाहता था”।

“जब जज ने रोहन से पूछा, “बेटा आपके मम्मी और पापा दोनों आपस में साथ नहीं रहना चाहते और क्योंकि वो दोनो ही नौकरी करते हैं तो ऐसे में आप किसके साथ रहना पसंद करोगे ?” तो उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा,”राइट टू लैगीटीमेट” के अन्तर्गत और “राइट फॉर नेचुरल जस्टिस ” के अन्तर्गत मेरे माता पिता को मेरी परवरिश करनी ही पड़ेगी जब तक मैं बालिग ना हो जाऊं ,हां अब क्योंकि इन दोनो के लिए इनका पैसा रुतबा और कामयाबी मुझसे कही ज्यादा महत्वपूर्ण है, तो मैं इनको मेरे मां बाप कहलाने के अधिकार से मुक्त करता हूं। जज अंकल, “आपसे अनुरोध है कि आप मुझे अनाथ आश्रम में भेज दे ” और ऐसा बोलते समय बच्चे के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी । कोर्ट रूम में सन्नाटा छा जाता है! किसी के पास अब कहने के लिए कुछ नहीं था । राजेश और सविता स्तब्ध हो गए और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और दोनों अपने बेटे के सामने घुटनों पर बैठ कर फूट फूट कर रोने लगे । जज साहब भी स्तब्ध हो गए उन्होंने बड़े प्यार से रोहन से पूछा ,”बेटा आप तो अभी केवल आठवीं कक्षा में पढ़ते हो आपको इन “कानूनी प्रावधान” के बारे में कैसे पता ” रोहन ने जवाब दिया,”अंकल वैरी सिम्पल! मेरे दोस्त के पापा वकील हैं मैंने उनसे पूछा था कि अगर कभी ऐसा हो तो मुझे बच्चों के अधिकार के बारे में बताओ” और थोड़ी बहुत जानकारी “गूगल” से निकली । “राकेश और सविता ने अपना केस वापस लिया और कोर्ट में ये फैसला किया कि बच्चा जब तक बालिग नहीं हो जाता वे दोनों आपस में सामंजस्य बिठाकर बच्चे की परवरिश पर ध्यान देंगे” । “पर बचपन में अायी रिश्ते में खटास आज तक नहीं भर पायी । ये बोलते बोलते रोहन की आंखे भर जाती हैं” ।

“रोहन! संभालो खुद को, इसका मतलब आपके अंदर वकील बनने के तमाम गुण बचपन में ही विकसित हो गए थे ” चलो तैयार हो जाओ आज मैं भी आपके साथ वॉक पर चलती हूं ।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,रूपल उपाध्याय

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