चन्द शेअर = विनोद निराश
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पकड़ा जो उसने हाथ में, रात हाथ मेरा ,
सोचता रहा यही बस , ना हो अब सवेरा।
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तुम पे हर वक़्त, नज़र रखता हूँ ,
इश्क़ है तू मेरा, खबर रखता हूँ।
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तुम्हे देख के जो , सुकूं मिलता है ,
मसअला -ए- सुकूं, वहीँ मिलता है।
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दास्तान-ए-इश्क़ अपनी , सुनाते हुए ,
खुद ही सो गयी कहानी, बताते हुए।
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खुदा ने नसीब में न लिखा था , तुम्हे मेरे लिए ,
वरना सिज़दे में कमी न रखी , कभी तेरे लिए।
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दिन का सुकूं , रात की नींद, खो दी मैंने तेरे वास्ते ,
अब तू ही बता क्या बचा, खोने के लिए तेरे वास्ते ।
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अहसास तो है मुझे, तेरे बदल जाने का,
मगर मलाल है तन्हा, छोड़ के जाने का।
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मुख़्तसर सा था इश्क़, उनका और मेरा ,
मगर दिल तोडा, तफ्सील से उसने मेरा।
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तेरे इश्क़ को अब, इस कदर भूला रहा हूँ ,
रोज़ मय में मय, मिला कर पी रहा हूँ।
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अब जमाने में मेरे लिए, कोई सजा नहीं ,
तेरे जाने के बाद अब ,कुछ बचा नहीं।
,,विनोद निराश = 09719282989