थामकर आक्रोश की कंदील कर में== anuradha pandey

 

थामकर आक्रोश की कंदील कर में== anuradha pandey

हो रहा था सामने अपराध तेरे,
अंध हो,धृतराष्ट्र सम बैठा रहा तब ।
बाद में इक भीड़ का हिस्सा बना तू ।
थामकर आक्रोश की कंदील कर में।

बो रहा था नाग जब निज विष अनय का ।
उस समय बल खो गया था क्या हृदय का ?
सो रहा था बेच क्या तू अश्व उस क्षण ?
चक्षु के जब सामने था दैत्य घर में।
थामकर आक्रोश—

सर्प चंपत पीटना क्या अब लकीरें।
फन कुचलते तो भले बनती नजीरें ।
बाद का तो क्रोध होता है नपुंसक-
ला न पाया तू त्वरित जब शौर्य शर में।
थामकर आक्रोश—

अंध पशु प्रतिरोध है जीवंत का गुण ।
दुष्ट कब समझे भला हैं मौन की धुन ।
श्रव्य होती प्रार्थना भी बस सबल की-
प्राण ला तू आज पहले क्लीव पर में।
थामकर आक्रोश की कंदील कर में।

,,,,,,,,,,,anuradha pandey

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