नाहक, तेरा मेरा है == अनिरुद्ध कुमार
Dec 2, 2019, 06:45 IST
मंदिर उसके, मस्जिद उसके,
पल का जीवन डेरा है।
ये तन तो माटी का मूरत,
फिर क्यों माया घेरा है?
दिन में सूर्य , रात में चँदा,
सुबह शाम का फेरा है।
वो ही मालिक इस बगिया का,
जब से जगो सवेरा है।
अपनी अपनी बोलीं बोले,
मुक्त गगन का घेरा है।
हम परिंदे एक डाली के,
धरती रैन बसेरा है।
प्राण उलझा इस भुलभुलैया,
सुख, दुख, तेरा मेरा है।
प्रेम द्वेष की पवना बहती,
सांसों का सब चेरा है।
जान रहे जाना है सबको,
फिर काहे अंधेरा है।
ये जीवन तो बहता पानी,
नाहक तेरा मेरा है।
बिचलो ना तुम चलो मुसाफिर,
जग माया का घेरा है।
चलता जा तूं मस्त चाल में,
ढलते रात सवेरा है।
,,,,,,,,,,,,,,अनिरुद्ध कुमार सिंह,
सिन्दरी, धनबाद, झारखंड।