मदिरा सवैया सृजन ==अर्चना लाल

 

मदिरा सवैया सृजन ==अर्चना लाल

 

【1】

भूल गई सब लाज पिया बिन ,

मैं बस जीवन वार चली।

ज्ञान सुधा सब मंद पड़ी अब ,

मोहन गौरव हार चली ।।

नैनन में बदरा झलके नित ,

अंतस एक पुकार चली।

प्रेम कहाँ दिल में रहता अब ,

नैन नदी की धार चली।।

【2】

कोमल है कलिका सखि री,

अंग अभी लहका – लहका ।

रंग चढ़ा जब लाल सुहावन,

यौवन है बहका- बहका।।

नैनन में कजरा शुभ शोभित ,

पाँव महावर है महका ।

पूर्णिम पावन सी यह रूपक ,

देख इसे मन है चहका।।

,,,,,,,,अर्चना लाल जमशेदपुर.  झारखंड

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