क्यों खौफ में है आधी आबादी……? ==डा० भारती वर्मा बौड़ाई

 

क्यों खौफ में है आधी आबादी……? ==डा० भारती वर्मा बौड़ाई

 ———- यह एक ज्वलंत विषय बन कर सर्वत्र और जनमानस में गंभीरता से छाया हुआ है और सभी यह सोचने के लिए विवश हैं कि क्यों हमारी आधी आबादी, जिसमें हर महिला वृद्धा हो, युवा हो, किसी भी रिश्ते की हो, परिचित-अपरिचित, छोटी कोमल बच्ची तक, खौफ में जी रही हैं, क्यों वे अपने घर में भी और बाहर सुरक्षित नहीं हैं….इसके लिए अनेक कारण गिनाये जा सकते हैं, सामाजिक व्यवस्था, कानून व्यवस्था, सरकार को कोसा जा सकता है जो हो भी रहा है। मेरे विचार से सबसे ज्वलंत और विचारणीय मुद्दा , विषय यह होना चाहिए कि इस खौफ से निकलने और निकालने के लिए हर व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर क्या प्रयास कर रहा है? कारण हम सभी जानते हैं पर उनके निवारण के लिए क्या हमने अपने स्तर पर, अपनी क्षमतानुसार कुछ प्रयास करने आरंभ किए हैं? व्यक्ति से परिवार बनता है , परिवार से मोहल्ला, समाज और देश बनता है तो प्रयास का आरंभ भी व्यक्ति से, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, घर-परिवार से ही आरंभ किया जाना चाहिए। परिवारों में होने वाली घरेलू हिंसा, शारीरिक शोषण, व्यभिचार को घर की मान-मर्यादा बनाये रखने के चलते दबा कर रखा जाता है, घर की स्त्रियाँ पुरुषों के बल और दबाव के सम्मुख चुप्पी साध लेती हैं। खौफ का आरंभ होता है और यह चलता रहता है। अशिक्षा, आर्थिक परतंत्रता, अपने ही माता-पिता का दबाव कई कारण होते हैं।अपने परिवारों से ही इस बुराई को निकालने का प्रयास हो, चुप्पी टूटे, स्त्रियाँ को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाये, शिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाया जाये। पुत्र मोह भी एक बड़ा कारण होता है। पुत्र के सौ गलत कामों पर परदा डाला जाता है क्योंकि वे वंश की बेल बढ़ाते हैं, बुढ़ापे का सहारा होते हैं और बेटियाँ तो पराई है, ससुराल चली जाती हैं। यह मिथक भी टूट रहे हैं। कहीं बुढ़ापे में बेटे साथ नहीं देते तो बेटियाँ देखभाल करती हैं। तो बेटा हो या बेटी…गलत काम किसी के भी हों, उन्हें बताया जाये, अच्छे कामों पर उनकी प्रशंसा की जाये, दोनों को बराबर जिम्मेदारी, ऊँच-नीच का अहसास कराया जाये ताकि वे स्वस्थ मानसिकता रखते हुए देश के एक अच्छे, आदर्श नागरिक बनें। बुरा घट रहा है, मानवता मर रही है, स्वार्थ बढ़ रहा है, हैवानियत बढ़ रही है तो इसके कारणों पर हर व्यक्ति अपने स्तर पर विचार करे, उन कारणों के निवारण के लिए हर व्यक्ति अपने स्तर पर, अपनी क्षमता के अनुरूप प्रयास करे। इतिहास की अच्छी बातों, अच्छी घटनाओं, अच्छे चरित्रों की बातों को विद्यालय में , घर में, कार्यक्रमों के द्वारा बताएँ, परिवार में बच्चों से आपसी संवाद होता रहे, सभी विषयों पर बच्चों से माता-पिता चर्चा करें, कामों की व्यस्तता के बीच भी परिवार के सभी सदस्य एक साथ खाने, कहीं जाने, अपने अच्छे-बुरे घटे-सुने अनुभवों को आपस में साझा करें। आज परिवार और समाज में ऐसे वातावरण की बहुत आवश्यकता है। इसके साथ ही अपनी संस्कृति से परिचय करवाया जाता रहे, हमारा व्यवहार, बातचीत, पहनावा कैसा हो, बड़े-बुजुर्गों का मान-सम्मान स्वयं भी करना और बच्चों को भी बताना, अपनी सभ्यता, वेद,पुराण, उपनिषद, धार्मिक साहित्य, धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, साहित्य से परिचित करवाना, सेवा भावना विकसित करना, आत्मरक्षा के उपायों से परिचित करवा कर उनका प्रशिक्षण देना,अच्छी पुस्तकों के पढ़ने की आदत डलवाना….. इन सब का भी व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे और भी अच्छे काम हो सकते हैं जिन्हें हम अपने घर, परिवार से आरंभ करके मोहल्ले, समाज और देश में कर सकते है। हर व्यक्ति पहल करे, कदम उठाये और अपनी जिम्मेदारी उठाये तो एक न एक दिन यह खौफ समाप्त होगा ही। ऐसा भी होता है कि बुरी घटी घटनाओं का इतना प्रचार मीडिया द्वारा और समाचारपत्रों में किया जाता है जिसे देख-सुन कर ऐसा लगता है कि जैसे अच्छा कुछ घटता ही नहीं। अच्छाई का प्रचार तो और ज्यादा किया जाना चाहिए ताकि जब लोग उसे सुनें और पढ़ें तो सकारात्मक विचार लोगों तक पहुँचें। किसी माता-पिता को बेटा बुरे हाल में छोड़ जाता है तो उसकी खूब चर्चा होती है पर जब कोई बेटा अपने माता-पिता के लिए अपना पूरा जीवन लगा देता है तो उसकी चर्चा उस स्तर पर क्यों नहीं होती? जब किसी बेटी की कोई सहायता करता है, उसे योग्य बनाने में, शिक्षित करने में बिना किसी प्रसिद्धि की इच्छा के सहायता करता है उसकी चर्चा क्यों नहीं होती? बुरी घटनाएँ प्रचार पाकर जनमानस पर छा जाती हैं और अच्छी घटनाएँ प्रचार के अभाव में लोगों तक नहीं पहुँचती। कहने का तात्पर्य है कि कुछ संख्या में लोग तरह-तरह की बुरी घटनाओं को अंजाम देने में लगे हुए है। वे दिशाभ्रमित है, उनकी मानसिकता को बदलना होगा, तन-मन और आवश्यकता पड़ने पर धन से भी प्रयास करने होंगे, अपनी व्यस्तताओं के बीच से समय निकाल कर समाज के लिए सोचना होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं? ——————————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई

Chat conversation end

Share this story