रुलाना छोड़ दे (ग़ज़ल )== अनिरुद्ध कुमार

 

रुलाना छोड़ दे (ग़ज़ल )== अनिरुद्ध कुमार

(1)
प्यार का ये फ़लसफ़ा, दुनिया निभाना छोड़ दें।
कौन पूछेगा किसे, गर मुस्कुराना छोड़ दें।
(2)
आशिकी बेजान होकर, दिल लगाना छोड़ दे,
टूट जायेगें जिगर, अपना निशाना छोड़ दें।
(3)
चाँद तारें औ’ जमीं, रंगत दिखाना छोड़ दे,
रात दिन बेचैन हो, मौसम सुहाना छोड़ दें।
(4)
फूल पौधे औ’ कली, खुशबू लुटाना छोड़ दे,
तितलियां भी क्या करें, सबको लुभाना छोड़ दें।
(5)
जो परिंदे उड़ रहें, क्या फड़फड़ाना छोड़ दे,
ये खुदाया कायदा, रश्में तराना छोड़ दें।
(6)
प्यार सी हंसी अदा, सारा जमाना छोड़ दें।
आदमी कैसे जियें, नजरें मिलाना छोड़ दें।
(7)
गीत गाये जिंदगी, क्या ये दिवाना छोड़ दे,
प्यार पर दुनिया टिकी, नाता पुराना छोड़ दें।
(8)
कायदे से जग बना, बस कायदा ना छोड़ दे,
कायदे में सब रहें, दिल को दुखाना छोड़ दें।
(9)
प्यार से हीं रौशनी, ‘अनि’ दिल जलाना छोड़ दे,
प्यार बिन कुछ भी नहीं, अब तो रुलाना छोड़ दें।
,,,,,,,,,,,,,,,,,अनिरुद्ध’अनि’ , धनबाद, झारखंड।

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