जले जब नेह की बाती (विधा-गीत) =अर्चना लाल
Jan 25, 2020, 05:50 IST
जले जब नेह की बाती,
लिपट मैं फिर वहाँ जाती।
अगन हिय पाश है प्रियवर,
मगर मैं रास करती हूँ।
जली हूँ दीप- बाति संग ,
मधुर अहसास भरती हूँ ।
विवश होते अधर मेरे ,
मुखर है प्रीत जज्बाती ।
जले जब नेह की बाती ,
लिपट मैं फिर वहाँ जाती।।
हृदय की वेदना प्रियवर,
कहो कब तक सहूँगी मैं।
पंख मेरे सुकोमल है ,
रीति सुंदर गहूँगी मैं ।
खड़ी हूँ मौन मुखरित सी ,
मुदित मैं पंख फड़फड़ाती।
जले जब नेह की बाती,
लिपट मैं फिर वहाँ जाती।।
बढे जब घोर अंधियारा,
गहन फिर रात है काली,
भटकती मैं विरहनी सी ,
दिखे ना भोर की लाली।
अगर दीपक जलाये तो ,
भँवर बनकर गुनगुनाती।
जले जब नेह की बाती ,
लिपट मैं फिर वहाँ जाती ।।
……………अर्चना लाल,
जमशेदपुर झारखण्ड