कहते कहते रुक गया था - भूपेन्द्र राघव
आओ तुमको गले से लगा लूँ ,
सारे दुःख दर्द मैं छील डालूँ।
बिन तुम्हारे न मैं रह सकूंगा,
उसको समझो, न जो कह सकूंगा।
कहते कहते ही मैं रुक गया था,
उसकी आँखों में कुछ दिख गया था ।
दिल की आतुरता दिल में दफ़न की,
बात मानी नहीं आज मन की।
अश्क बहने से मैने जो रोके,
भर गए चक्षुओं के झरोखे।
एक टक हो क्षितिज में कहीं पर ,
उन्नयन दृगपटल टिक गया था।
कहते कहते ...................................
वक्त सँग-सँग जो हमने गुजारा,
घूमने वो लगा सब नज़ारा।
बाहुपाशों में मेरे सिमटना,
दूर शरमा के एकदम से हटना।
क्या वही फूल सा है ये चेहरा,
इन लकीरों में जो लिख गया था ।
कहते कहते ..................................
याद आने लगीं सारी बातें,
ख्याल ख्वाबों भरी सारी रातें।
बादलों का वो छम छम बरसना,
मिलना, हंसना, बिछड़ना, तरसना ।
प्रेम का उगता सूरज अचानक,
जाने किस धुंध में छिप गया था।
कहते कहते ..................................
किसके प्रारब्ध में क्या लिखा है,
कौन संजय है, किसको दिखा है।
मेरे अरमानों की खुदकुशी है,
तेरी खुशियो में मेरी खुशी है।
भूल जाना तुम इतना समझना,
इश्क खातिर कोई बिक गया था।
कहते कहते ..................................
हो हमेशा ही खुशियों की बारिश,
मेरी रब से यही है गुजारिश।
कोई गम तुझको छूने न पाए,
तेरी आँखों में आंसू न आये।
याद रखना वफा की कहानी,
कोई ऐसा भी आशिक गया था।
कहते कहते ही मैं रुक गया था,
उसकी आँखों में कुछ दिख गया था।
उसकी ...........................................
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा, उत्तर प्रदेश