क्षमा की कलम से - डा० क्षमा कौशिक

 
pic

राम नाम की धुन ही निकले ऐसी बना दो बांसुरी,
तन हो जाए वृंदावन और मन हो जाए अवधपुरी।

चांद हैरान सा नभ में राह सूरज की तकता है,
रवि उषा की बाहों में कहीं अलसा सा दुबका है।
चुप सी हो गई कोयल विहग दुबके से सोए है,
शरद की प्रात कंपित है,घरों के द्वार आवृत्त हैं।।
- डा० क्षमा कौशिक,  देहरादून  
 

Share this story