मधुमास मिला - प्रीति त्रिपाठी 

 
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मेरे जीवन का मधु हो तुम, 
तुम से ही मधुमास मिला, 
मधुर मधुर अधरों को छूकर, 
जीवन में संगीत खिला।

दे कर के सिंदूर दूर से, 
तुमने मुझको पास किया, 
अब तो मेरा जीवन सारा,
बना हुआ है मधुशाला।

त्याग समर्पण का व्रत लेकर,
अंतर्मन की साध जुडी,
शांत भाव से बहती जाती,
पहले की उन्मुक्त नदी। 

सुखद सभी एहसास सभी,
जो प्रेम पाश से मिलते हैं,
बंधन की सुंदर गरिमा से,
पुष्प हृदय में खिलते हैं।

प्रेम अगर अव्यक्त रहे तो,
और सरस हो जाता है,
और कभी हम व्यक्त करें तो,
खुल जाती है मधुशाला।

मेरे जीवन का मधु हो तुम
बनी रहे यह मधुशाला। 
- प्रीति त्रिपाठी: दिल्ली
 

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