भिड़े मजहबी होड़ में — डॉo सत्यवान 'सौरभ'

भूल गए हम साधना, भूल गए हैं राम।
मंदिर-मस्जिद फेर में, उलझे आठों याम॥
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प्रेम-त्याग ना आस्था, नहीं धर्म की खोज।
भिड़े मजहबी होड़ में, मंदिर-मस्जिद रोज़॥
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मंदिर-मस्जिद से भली, एक किताब दुकान।
एक साथ है जो रखे, गीता और कुरान॥
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मंदिर में हैं टाइलें, मस्जिद में कालीन।
लेकिन छप्पर में पढ़े, शिबू और यासीन॥
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भूखा प्यासा मर गया, मंदिर में इंसान।
लोग भोग देते रहे, पत्थर के भगवान॥
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मंदिर से मस्जिद कहे, बात एक हर बार।
मिटे न दुनिया की तरह, हम दोनों का प्यार॥
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मंदिर-मस्जिद बांटते, नफ़रत के पैगाम।
खड़े कोर्ट में बेवज़ह, अल्ला औ' श्रीराम॥
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मंदिर पूजन छोड़कर, उनको करूँ प्रणाम।
घर-कुनबे जो त्यागकर, मिटे देश के नाम॥
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मंदिर के भीतर चढ़े, पत्थर को पकवान।
हाथ पसारे गेट पर, भूखा है इंसान॥
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हम रहते हैं फूल से, हर पल यूं अनजान।
मंदिर और श्मशान का, नहीं जिसे हैं भान॥
- डॉo सत्यवान सौरभ,, 333, परी वाटिका,
कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148, 01255281381