'एकांकृति' काव्य संग्रह पुस्तक में काव्यगत वृत्तियों के दर्शन सहज ही दिखाई पड़ रहे हैं - भूपेश प्रताप

 
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utkarshexpress.com - भारतीय साहित्य में हिंदी काव्यधारा सदैव बलवती रही है l देश-काल की बदलती परिस्थितियों में वैयक्तिक अनुभवों का पुंजीभूत होना आकस्मिक घटना नहीं होती l विचारों का संघटन और उनमें से अनुभवजन्य शब्दों का गुम्फन तभी सम्भव होता है जब परिवेश और परिस्थितियाँ स्वत: निर्मित हुई हों  l
'एकांकृति'  काव्य संग्रह  में इन काव्यगत वृत्तियों के दर्शन सहज ही दिखाई पड़ते हैं l 'रोशनी की हर किरण को भेदता -सा मेरा मन' पंक्ति चिंतन की उस विराटता का दर्शन कराती है, जहाँ पहुँचकर भौतिकता से दूर एक नए आलोकपट के खुलने की संभावना निर्मित होती है l वर्तमान की समस्याओं को सकारात्मक भावों के बल से पार करके नवीनता को सृजित करना स्वयमेव ही प्रशंसनीय है l 'डब्बों में साँसें बेचने' की बात कहना उस व्यवस्था को सिरे से ख़ारिज़ करना है जो मानवता के लिए कालकूट है lभारतीय संस्कृति, दर्शन परम्परा में मानवता को सबसे बड़ा धर्म माना गया है l यह धरती देवों के रहने की जगह है लेकिन इसे रहने योग्य तो बनाना होगा l कवयित्री इस बात से बेहद चिंतित है कि कहीं ऐसा न हो जाए कि मानवीयता की अभाव में आत्मीयता का ताना-बाना उधड़ जाए l यदि ऐसा हुआ तो भविष्य में विकास की रेख भी न दिखेगी l 'नभ का तारा न बनकर सूरज बनाना' पंक्ति तारों की क्षीणता या सूर्य के प्रताप को वर्णित करना नहीं है, बल्कि यह उनका प्रयुत्तर है जो अपने सहभागियों के अस्तित्व का निर्धारण अपनी योग्यता और क्षमता के आधार पर करते हैं, जो कि सर्वथा और सर्वदा अस्वीकार्य ही रहेगा l भविष्य का निर्धारण इस आधार पर कभी न होगा कि किसका कितना विस्तार है बल्कि इस इस आधार पर होगा कि किसने अपनी शक्ति का पावनतम लोककल्याणकारी उपयोग किया l 'स्त्री अस्तित्व' पर लिखी कविता ऐसा पारिवारिक और सामाजिक विमर्श है, जिसमें असंख्य बन्ध हैं जब तब इन बन्धनों से नारी समाज पूर्णरूपेण मुक्त नहीं हो जाती तब तक वह पूर्णता के समीप होकर भी शक्तिरूपा छिन्नावरण से ही आवृत्त रहेगी l घर,परिवार ,समाज , प्रकृति और राष्ट्र के स्तम्भों आधारित सरल और सहज भाव से लिखी गई 'एकांकृति काव्य संग्रह' लोक मार्गदर्शन करती रहे इसी मंगलकामना के साथ कवयित्री 'अर्तिका श्रीवास्तव' जी को स्नेह-आभार प्रेषित कर रहा हूँ l 
संपादक एवं समीक्षक - भूपेश प्रताप सिंह, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

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