ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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रोता है क्यों ओ लख्ते-ज़िगर मेरे सामने । 
बैठा है क्यों झुकाए ये सर मेरे सामने ।

किसने सताया है तुझे क्या दर्द है बता ,
देता नहीं क्यों उसकी ख़बर मेरे सामने ।

किस आरजू की पोटली दिल में लिए हुए ,
अब खोल दे वो गांठ बिखर मेरे सामने ।

मोती नहीं मिलेंगे किनारे पे झील में ,
उस झील में नीचे को उतर मेरे सामने ।

आकाश में उड़ना है तो पंखों को धार दे ,
तूफ़ान आंधियों से न डर मेरे सामने ।

मैं तेरे साथ हूं सदा मुझ पे यक़ीन कर ,
मत छोड़ हौसलों का सफ़र मेरे सामने ।

मैं साठ साल का तुझे ढाढस दिला रहा ,
क्या है अभी ये तेरी उमर मेरे सामने ।

क्या ख़्याब है तेरे मुझे खुलकर ज़रा बता ,
करना जो चाहता है वो कर मेरे सामने ।

आंखें लहू से लाल कर हाथों में तेग ले ,
तेरे से ख़ुद डरेगा शरर मेरे सामने ।

'हलधर' तेरे क़तील का हो जाएगा गवाह ,
मरना है तो फिर मार के मर  मेरे सामने ।
 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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