ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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आंखों से अश्कों का झरना छूट गया ।
लालच में बेटा मां का धन लूट गया ।

सोचा था यारी में जान लुटा दूंगा ,
लेकिन उससे आज भरोसा टूट गया ।

सट्टेबाजी छोड़ काम कर ले सीधे ,
परामर्श पर यार मुझे ही कूट गया ।

सरहद पर करतब देखे रण वीरों के ,
मेजर से आगे लड़ने रँगरूट गया ।

बाजारों की चाल बड़ी बेढंगी है ,
रेशम के भावों से ऊपर जूट गया ।

पीछे छूट गए पौराणिक पहनावे ,
धोती कुर्ता से आगे अब सूट गया ।

झूठे भाषण सुनकर भूख गरीबी पर ,
'हलधर' का नेता के सर पे बूट गया ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून
 

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