ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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नागरिक कानून पर कुछ लोग संसय में पड़े हैं ।
ज्ञान का आलोक गुम है दीप कुहरे में खड़े हैं ।

चेतना गायब दिखायी दे रही है कुछ दलों में ,
राष्ट्र को नीचा दिखाकर कह रहे हम ही बड़े हैं ।

सात दशकों में नहीं जो जान पाए ज़ख्म मेरा,
आज वो भी कह रहे हैं घाव उनके भी सड़े हैं ।

नाम गाँधी का लगाकर तीन बंदर साथ लेकर ,
बाटने यह देश फिर से आ गए चिकने घड़े हैं ।

जेल में जिस शख़्स ने पूरी जवानी काट दी हो ,
आज उसका नाम ही बदनाम करने पर अड़े हैं ।

नक्सली टोली नजारा देख लो जे एन यू में ,
दफ्तरों में काम ठप है गेट पर ताले जड़े हैं ।

वो भला कैसे पढ़ेगा देश का भूगोल यारो ,
रोम है ननिहाल जिसकी पास झूंठे आंकड़े है ।

गर नहीं संभले अभी तो देश ये फिर से बटेगा ,
रूप जिन्ना का लिए "हलधर"कई नेता खड़े हैं ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून 
 

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