ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Feb 16, 2025, 23:05 IST

जो चाहता था जिंदगी से वो मिला नहीं ।
हालात के सम्मुख खड़ा हूं मैं हिला नहीं ।
नज़दीक थी मंज़िल मगर मैं पा नहीं सका ,
पीछे खड़ी थी भीड़, मिला काफ़िला नहीं ।
अब ख़्वाब में आता नहीं है यार सुखनवर,
बदमासियों के दौर का वो सिलसिला नहीं ।
क्या गलतियां कुछ हो गई हैं बागवान से ,
वीरान है उसका चमन क्यों गुल खिला नहीं ।
साकी तेरी निगाह से इतना नशा हुआ ,
बोलें शराबी लोग अब मुझको गिला नहीं ।
किससे कहूं कैसे करूं मैं दर्द को बयां ,
परदेश में घर है मेरा अपना जिला नहीं ।
'हलधर' ग़ज़ल अच्छी लगी तो दाद दीजिए,
मजबूत सारे शे'र कोई पिलपिला नहीं ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून