ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Nov 7, 2024, 22:36 IST
नहीं है आज सिर पर ताज लेकिन कल हमारा है ।
चलें देखें समंदर का कहां दूजा किनारा है ।
सजी मंदिर कि मूरत बोल सकती है अगर चाहो ,
लगे उसको किसी ने आज अंदर से पुकारा है ।
नुकीली धार पानी की जमा पर्वत हिला देती ,
यकीं ना हो तो देखो गंग को किसने उतारा है ।
जरा सी चोट लगती है कलेजा मात का हिलता ,
खुदाई जोड़ ममता का अनौखा ही पिटारा है ।
कभी सोचा नहीं हमने पिताजी छोड़ जाएंगे ,
लगाया जो शजर हांथों से अब वो ही सहारा है ।
गिने क्या पैर के छाले कभी अपने बज़ुर्गों के ,
जलाकर हाथ अपने आग में हमको सँवारा है ।
लपट आने लगी आतंक की बहती हवाओं में ,
लिए खंजर खड़ा जो सामने किसका दुलारा है ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून