ग़ज़ल - भूपेन्द्र राघव

 
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आँधियों  को   आजमाना   चाहिए, 
दीप   आशा   के   जलाना  चाहिए। 
मुश्किलों  का  हारना   है   लाजमी, 
हौसला   मुट्ठी   में   आना   चाहिए।  
पर्वतों  के  भाल  सब झुक  जायेंगे, 
तीर   तवियत   से   चलाना चाहिए।  
सब  दधीची   ही  बनें  संभव  नहीं,  
डूबतों    को   तृण  बहाना  चाहिए।   
हैं  बड़ा  आसां   उठाना  उँगलियाँ, 
स्वयं  को  दर्पण   दिखाना  चाहिए।  
आ  पकड़  ले हाथ  मेरा उठ  जरा,
पाँव    नंगे    घूम    आना   चाहिए।  
हाल  मेरे   दिल  को  तेरा  है  पता, 
पर  तुझे  भी  हक़  जताना चाहिए।  
क्या  जरूरी  ईद  होली   ही  मिलें,
यूँ  कभी   मिलना  मिलाना चाहिए।  
सर  उठाना  चाहते  हो  तुम  अगर, 
तब अदब से सर  झुकाना  चाहिए।  
इक  इमारत  आपकी  बन जायेगी, 
नींव   में  खुद  को  खपाना चाहिये।  
भूलकर भी अब न काटें हम शजर,  
पंछियों   को   आशियाना   चाहिए।  
बात  'राघव' ख़त्म  होती  हो अगर, 
बात   को  क्यूँकर  बढ़ाना  चाहिए।  
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा, उत्तर प्रदेश

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