गजल - रीता गुलाटी

 
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आपकी चुप भली से डरते हैं,
प्यार की बेखुदी से डरते हैं।

ढह न जाये कही उम्मीदे अब,
हाय इस बेबसी से डरते हैं।

आ कही डूबते हैं तम गहरे,
फैलती चाँदनी से डरते हैं।

खौफ हमको नही है दुनिया का,
हम तेरी दोस्ती से डरते हैं।

यार की बेरूखी डराती बस,
आँख की इस नमी से डरते हैं।

खुल न जाए ये राज अब तेरा,
हाय अब हम इसी से डरते हैं।

नाज नखरे नही मेरे सहता,
यार की बेखुदी से डरते हैं।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़ 
 

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