ग़ज़ल - रीता गुलाटी

 
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मुहब्बत को मुहब्बत से सुनो यारा निभा देना,
जियेगें हम भला कैसे, सभी सच तुम बता देना।

बड़े बेबस निकाले हैं, परिन्दे अपने ही घर से,
खुदा मेरे उन्हे तुम प्यार से इक आसरा देना।

दिलो मे प्रेम का सागर, हिलौरे ले रहा हरदम,
बनाया खास जो रिश्ता,नही दिल से भुला देना।

हुआ आबाद घर मेरा, मिली मुझको दुआएँ भी,
नही की गर खता मैने, सभी मुझको दुआ देना।

नही समझी,तिरे सच को, करूँ कैसे यकीं तुम पर,
समझ पाओ मेरे दिलबर, खता मेरी मिटा देना।

अदाएं मार डालेगी,जरा बचकर सजन रहना,
लबो पर चुप्पियाँ रखकर ,निगाहों से बता देना।

नही की गर खता मैने, सभी मुझको दुआ देना,
मेरी कुर्बत मे आकर ऋतु सभी गम तुम बहा देना
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़ 
 

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