ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Jan 22, 2025, 23:16 IST

लगा ली दर पर ये अर्जियां हैं,
सुकुन दे दो कि गलतियाँ हैं।
वो प्यार देती दी मस्तियाँ हैं,
कि रौनकें होती बेटियाँ है।
महक उठी बेटियों से बगिया,
लगे वो उड़ती सी तितलियां हैं।
लगा ली माथे पे बिन्दिया भी,
सजी है कानो मे बालियाँ हैं।
तुम्ही से मेरी ये जिंदगी बस।
ये हसरते भी हुई जवाँ है।
नये जमाने की खिड़कियां है,
नही दिखी अब तो खामियां हैं।
हुआ है नभ मे घना अँधेरा,
चमक रही आज बिजलियाँ हैं।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़