ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Feb 10, 2025, 23:17 IST

क्या मजा आपस मे लड़वाने मे है,
प्रेम से जीना तो समझाने मे है।
छोड़कर हमको गये परदेस वो,
रात कटती आज वीराने मे है।
चैन से बिस्तर पे लेटा सोचता,
देखता सपने वो अन्जाने मे है।
खोजते हैं आज बच्चे स्वाद को,
माँ के हाथों की महक खाने मे हैं।
यार बहका हूँ उसे लेने के लिये
वो मिले मदिरा भी मैखाने मे है।
झेलते है दर्द को बिन बात के,
पा रहे हम सब खुशी गाने मे है।
माँ के जैसा कब मिला संसार* ऋतु,
माँ का प्यारा हाथ सहलाने मे है।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़