सरकारी सेवक - हरी राम यादव

 
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सत्ता शक्ति के मद में होकर चूर,
सरकारी सेवक चल रहे उतान।
झंझरी वाले झीने कपड़े को,
समझ लिया सिर पर तना वितान।
समझ लिया सिर पर तना वितान, 
अपमान कर रहे नित जनता का।
मार रहे हैं थप्पड़, दे रहे हैं गाली,
सरकारी सेवा में यह बनता क्या?
चेतो सत्ता के सिंहासन पर बैठे,
खुद को जनसेवक कहने वालों।
कल तुम थे जनता, आज जनसेवक,
यह दमनकारी रवायत बदल डालो।।

जनता जब बनती बुद्ध से क्रुद्ध,
तब सारे सिंहासन हिल जाते हैं 
प्यारे प्यादे  शक्ति, प्रशासन ,
जनता की आंधी में बह जाते हैं।
जनता की आंधी में बह जाते हैं,
मांगे मिलती न तब दया की भीख।
जनता ही शासक जनता शासित,
जनता ही सब कुछ, यह लें सीख।
अत्याचारों के आतप से अकुलाई,
जनता अब त्राहि-त्राहि बोल रही है।
सरकारी सरमाएदारों की साहब ,
नित नयी कहानी खोल रही है।।
 - हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश  
 

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