हिंदी का दर्द - जसवीर सिंह हलधर

 
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हिंदी शब्द वाहिनी सैनिक बोल रहे हैं ।
जन जन की भाषा बनने को डोल रहे हैं ।।

अंग्रेजी के वारों से अति  क्षीण हो गये ।
छायी धूमिल परत और गमगीन हो गये ।।
पड़े पड़े सबका अस्तित्व हुआ धुँधला सा ।
नाखूनों से अपनी चमड़ी छोल रहे हैं ।।
हिंदी शब्द वाहिनी सैनिक बोल रहे हैं ।।1 ।।

संविधान ने हमको सीधा बांधा होता ।
आम आदमी की भाषा में साधा होता ।।
दफ्तर के बाबू के अधरों पर बस जाते ।
जिसके शब्दो को संसद में तोल रहे हैं ।।
हिंदी शब्द वाहिनी सैनिक बोल रहे हैं ।।2।।

हिंदी तो लगता है बस लिपियों में सोई ।
राजनिति की फसल अकादमियों ने बोई ।।
उर्दू के सैनिक तो लगते घुले मिले से ।
लकिन अंग्रेजी वाले विष घोल रहे है ।।
हिंदी शब्द वाहिनी सैनिक बोल रहे हैं ।।3।।

खच्चर भाषा ने हमको तो घाव  दिए हैं ।
फिल्मों ने गहरे गड्ढ़े में  दाब दिए हैं ।।
नश्वरता की लहरों से अब हमें उभारो ।
असमंजस के बादल झूला झोल रहे है ।।
हिंदी शब्द वाहिनी सैनिक बोल रहे हैं ।।4।।

हमको है विस्वास जीत तो पक्का होगी ।
मिले सही उपचार  ठीक हो जाये रोगी ।।
भांति मोतियों के सज जायेंगे छंदों में ।
रूढ़िवादिता के बंधन हम भी खोल रहे हैं ।।
हिंदी शब्द वाहिनी सैनिक बोल रहे हैं ।।5।।

कलम पुजारी हमको मंजिल पार करा दो ।
शब्द साधना से जग का उद्धार करा दो ।।
हमको भी बांधों "हलधर"अपनी कविता में ।
जन गण की सेवा को राह टटोल रहे हैं ।।
जन जन की भाषा बनने को डोल रहे हैं ।।6।।
 - जसवीर सिंह हलधर , देहरादून
 

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