पावन  टीका  –  भूपेन्द्र राघव

 
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जब जब ईश्वर खुश हो होकर, दिव्य दुआएँ देता है,
शक्ति-रूप में, नेह-वारि के, ईश कुआंएं देता है ।
जीवनपथ की तप्त धरा पर विपदाओं की धूप चढ़े,
छाँव हेतु तब बहन, बेटियाँ और बुआएँ देता है ।

सप्त सिंधु के जल से ज्यादा, प्यार छुपा है टीके में,
सप्त गगन के तारे कम, अधिकार छुपा है टीके में ।
पावन टीके की पावनता, देखो पावन आँखों से,
युगों युगों से ईश्वर का, आकार छुपा है टीके में ।
– भूपेन्द्र राघव, खुर्जा, उत्तर प्रदेश
 

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