कुंडलिया - मधु शुक्ला

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बदले - बदले  लग  रहे, मौसम के अंदाज।

चकमा  देने  में  नहीं, आये  उसको लाज।।

आये  उसको लाज,अगर तो करे न धोखा।

तजे न रीति रिवाज, रहे बनकर वह चोखा।।

क्यों होता वह आज, न जो होता था पहले।

चिंता  की  है  बात, प्रकृति ने तेवर बदले।।

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बातें   तो   उपकार   कीं,  करता   है   संसार।

दीन  हीन  लाचार  से, कभी  न  करता प्यार।।

कभी न करता प्यार, जगत यह निर्धन जन से।

धनवानों  से  प्रीति, जताये  तन  मन धन से।।

कथनी  करनी  भेद,  सिखाता   रहता   घातें।

उपजातीं    संदेह ,  तभी   अपनों  कीं  बातें।।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश

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