निभाए तो कैसे, कौन-सा रिश्ता? — प्रियंका 'सौरभ'

 
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गुलिस्तां जो थे सुनसान हो गए।
पंछी पेड़ों से अनजान हो गए॥

आदमी थे जो कभी अच्छे-भले,
बस देखते-देखते शैतान हो गए॥

सोचा ना था कभी ज़ख़्म महकेंगे,
गज़लों का यू ही सामान हो गए॥

निभाए तो कैसे, कौन-सा रिश्ता?
दिल सभी के बेईमान हो गए॥

पूछते हैं काम पड़े सब हाल मियाँ,
मतलबी अब सारे इंसान हो गए॥

दीवारें जिनकी होती थी साया,
जानलेवा अब वह मकान हो गए॥

जिंदा तो क्या बिकती है लाशें यहाँ,
आमदनी का ज़रिया श्मशान हो गए॥

लूटते हुए देश को संभाले तो कौन,
भगत और सुभाष तो कुर्बान हो गए॥
-प्रियंका सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045 
(मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 
 

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