भारत माता की पुकार - जसवीर सिंह हलधर

 
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खंडित है भूगोल देश का ,सत्य अहिंसा के बंधन में ।
बंद करो शृंगार गीत अब ,आग भरो कविता लेखन में ।।

राजा बौद्ध भिक्षु बन बैठे , गिरवीं रख दी शक्ति पुरानी ।
खिरजी, हूण, मुग़ल घुस आए ,दर्द भरी है बहुत कहानी ।
खेल दासता का मुग़लों से ,सदियों तक खेला भारत ने ।
रास वासना का छाती पर ,बहुत दिनों झेला भारत ने ।
सारा वैभव निगल चुकी थी , मुग़लों की ये भोग बिलासा ।
गौरे शासन ने भारत की ,घायल की मौलिक परिभाषा ।
एक समय था जब भारत ने ,वीर सिकंदर उल्टा मोड़ा ।
बेटी चंद्रगुप्त को ब्याही ,तब सैल्यूकश जिंदा छोड़ा ।
अनल सरीखा रक्त हमारा ,शीतल हुआ बौद्ध मंथन में ।।
बंद करो शृंगार गीत अब ,आग भरो कविता लेखन में ।।1

बहुत हुआ नुक़सान देश का ,सत्य अहिंसा के चक्कर में ।
भारत के फाड़ हो गए , गांधी जिन्ना की टक्कर में ।
हिंदू और मुसलमां दोनों नफ़रत का समान हो गए ।
देश बांटने वाले नेता ,दोनों ओर महान हो गए ।
दशकों बाद देश मेरा अब,गहरी निद्रा त्याग रहा है ।
आतंकी शिविरों पर अब तो ,सीधे गोले दाग रहा है ।
पाक चीन दोनों से पूरी ,टक्कर को तैयार खड़ा है ।
घर में भेदी घुसे हुए हैं ,प्रश्न सामने बहुत बड़ा है ।
लिपटे हुए नाग ज़हरीले,भारत भू के चंदन वन में ।।
बंद करो शृंगार गीत अब ,आग भरो कविता लेखन में ।।2

ऐसा लगता है भारत में , गृह युद्ध की तैयारी है ।
मज़हब के सौदागर ढोना , सरकारों की लाचारी है ।
अपने स्वार्थ छोड़कर हमको ,भारत हित में लिखना होगा ।
चंद लिफाफों के चक्कर में ,और नहीं अब बिकना होगा ।
कविता में त्रेता से अब तक ,सारी घटनाओं का लेखा ।
द्वापर में कौरव कुनबे को ,कलह आग में जलते देखा ।
कविता ने मुग़लों हूणों के , देखे अंतिम छोर किनारे ।
कविता ने धरती में गलते ,देखे कितने भूप सितारे ।
नेताओं के कर्म देखकर ,हलचल है साहित्य सदन में ।।
बंद करो शृंगार गीत अब, आग भरो कविता लेखन में ।।3

अंग्रेजी शासन का रथ भी ,कविता ने ही उल्टा मोड़ा ।
घोर दासता की बेड़ी को ,कविता के छंदों ने तोड़ा ।
वक्त आ गया अब कवियों ,भारत को जलने से रोको ।
बात करें जो भी नफरत की , ऐसे कवियों को भी टोको ।
हिंदू मुस्लिम बीच खड़ी जो ,तोड़ो ये ऊंची दीवारें ।
आगे बढ़ी और नफ़रत तो ,खंडहर होंगे घर मीनारें।
ये नफ़रत की आग देश को ,पहले भी तो चाट चुकी है ।
अपनों के हाथों अपनों का ,गला मुल्क में काट चुकी है ।
लाल दुसाले वाली डायन ,घूम रही नगपति प्रांगण में ।।
बंद करो शृंगार गीत अब ,आग भरो कविता लेखन में ।।4

रूस और यूक्रेन सरीखे, मुल्क खून में सने हुए हैं ।
युद्धों के बारूदी बादल,आसमान में तने हुए हैं ।
इजरायल अभिमन्यु सरीखा , युद्ध भूमि में फसा हुआ है ।
इस्लामी मुल्कों ने उस पर ,चक्रव्यूह सा कसा हुआ है ।
दुनिया के हालात बुरे हैं ,हमको देश बचाना अपना ।
विश्व गुरु होने का दावा , होवे सिद्ध न होवे सपना ।
हिंदू मुस्लिम सिक्ख इसाई,सबको मिलकर चलना होगा ।
दीपक बनकर जलना होगा ,एक रूप में ढलना होगा ।
हलधर लो सौगंध देश हित, खुशहाली हो घर आंगन में ।।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून 
 

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