काविता (अटल जयंती) - जसवीर सिंह हलधर

 
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वचनों कर्मों औ वाणी में ,जिनके बसते थे रघुनंदन ।
क्यों धरा छोड़ कर चले गए ,जन जन में फैला है कृन्दन ।।

यू एन ओ जैसे मंचों पर हिंदी का मान बढ़ाया था ,
निर्वाह किया था राज धर्म जन जन विश्वास जगाया था ,
तुम भूख गरीबी से लड़ कर बन गए काव्य सृजक ज्ञानी ,
तुम भारत भू के गौरव हो तुम नए राष्ट्र के अभियानी ,
संसद में काम किया ऐसे ज्यों सांपों बीच रहे चंदन ।
क्यों धरा छोड़ कर चले गए जन जन में फैला है कृन्दन ।।1

आवाज अटल की पहचानी जे पी ने सत्य विचारों में,
माँ बेटे का तूफान थाम पहुचे संसद गलियारों में,
आपात काल में गए जेल ज्यों सूर्य छुपा हो बरगद में ,
जनता का फिर आशीष मिला तब अटल विराजे संसद में ,
निरपेक्ष भाव से काम किया सब तोड़े सम्प्रदाय बंधन ।
क्यों धरा छोड़ कर चले गए जन जन में फैला है कृन्दन ।।2

तुम लोकतंत्र की थे मिसाल जो रुकी नहीं थी घेरे में ,
तुम राज निति के थे मसाल बांटा आलोक अंधेरे  में ,
तुम समता के सौदागर थे तुम ही भूखों की अर्जी थे ,
कर्मों से दीन दयाल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे ,
परिवार वाद से छुटकारे का किया देश में प्रबंधन ।
क्यों धरा छोड़ कर चले गए जन जन में फैला है कृन्दन ।।3

बी जे पी का निर्माण किया कीचड़ में कमल खिलाया था ,
संयम से देश चलाने का गुर चेलों को सिखलाया था ,
तुम स्वयं त्याग की मूरत थे ,तुम दीपक हठी जवानी के ,
तुम शब्दों के जादूगर थे रूपक थे हिंदी वाणी के ,
हलधर "से कलम सिपाही का स्वीकार करो श्रद्धा वंदन ।
क्यों धरा छोड़कर चले गए जन जन में फैला है कृन्दन ।।4
 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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