कविता - अंजू लता

 
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क्या करूं अब रख कर कोई राज मैं?
सदा रहती हूँ मस्त अपने अंदाज में,
हंसती हूँ खिलखिलाती हूँ -
नियमों को मैं निभाती हूँ.

बच्चों के साथ,उन्हें-
खेलती, खिलाती हूँ,
लिखती हूँ गीत कई-
मस्त होकर गाती हूँ.

कला-कौशल संग मेरे-
आर्ट, क्राफ्ट, बागवानी,
अध्यापन, कलमकारी-
यही मेरी जिंदगानी.

किसकी पसंद हूँ मैं-
करना क्या जानकर?
सखियों में सुख मिले-
बैठूं ना हारकर.

मां से प्यार करती हूँ-
मुझे उन पर नाज है,
मेरे सब अपने तो-
मेरे सर का ताज हैं.

अंदाज मेरे जीने का-
सरल,सीधा-सादा है,
अपना दि बैस्ट दूंगी-
मेरा यह वादा है.
- डा.अंजु लता सिंह गहलौत,
 नई दिल्ली
 

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