कृष्ण कन्हैया - ज्योति अरुण
Fri, 3 Mar 2023

मैं वारी उस कान्हा को जाऊ,
छू अधरो को बंसी हो जाऊ।
शीश पर मुकुट मोर विराजे,
पितांबरी पूरे तन पर साजे।
चाहत उस कृष्ण कन्हैया की,
सुनु धुन उस बंसी बजईया की।
नित प्रेम करु मैं गिरधारी से,
राह देख रही जो बेकरारी से।
चाह उस कृष्ण मुरारी की,
मैं बलिहारी हुई बनवारी की ।
- ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा, उत्तर प्रदेश