प्रेम गीत - श्याम कुंवर भारती

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नैन सुख दुभर हीय तड़पे चितचोर श्याम क्यों छोड़ गए,
जन्मों का बंधन छलिया नेह जगाकर राधा क्यों छोड़ गए।

निसदिन निहारूं राह तुम्हारी अब आओगे कब आओगे, 
बृंदावन की कुंज गलियों में यमुना तिर मिलने कब आओगे।
बिरह की मारी मुझ दुखियारी मुझसे तुम मुंह क्यों मोड़ गए।।

तुम निष्ठुर निर्मोही जबसे गए पलट कर न देखा कैसी हूं मैं,
तन मन का भान नहीं सुख कर देह कांटा हुई वैसी हूं मैं।
उफनत यमुना में बाढ़ आए अंसुवन धार क्यों नाता जोड़ गए।।

तुम संग जो होते मीठी बांसुरी की धुन सुन सुध बुध खोती,
करती सोलह श्रृंगार रिझाती तुमको सखियन में खूब इतराती।
सुध न कभी लेते मेरी राधा गोरी प्राण प्यारी देकर दुख करोड़ गए।।
- श्याम कुंवर भारती, बोकारो, झारखंड
 

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